सीमा पार से आतंकवाद के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र में फिर गरजा भारत, पाकिस्तान की बोलती बंद
एजेंसी। संयुक्त राष्ट्र में भारत ने एक बार फिर आतंकवाद (Terrorism) का मुद्दा उठाते हुए पाकिस्तान (Pakistan) को घेरा है। भारत ने जोर देते हुए कहा कि अपने राजनीतिक हितों के लिए आतंक का उपयोग करने वाले राष्ट्रों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। ऐसा तभी ही संभव है जब सभी इस वैश्विक खतरे के खिलाफ एकजुट हों।
‘आतंकवाद के खिलाफ हम सब साथ खड़े हों’
संयुक्त राष्ट्र में भारत की प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज (Ruchira Kamboj) ने ये बयान ‘राष्ट्रों के बीच कानून के शासन’ की बहस पर बोलते हुए दिया। कंबोज ने कहा कि, राजनीतिक फायदे के लिए सीमा पार आतंक का इस्तेमाल करने वालों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। ये तभी संभव होगा जब आतंकवाद जैसे खतरे के खिलाफ हम सब एक साथ खड़े हों और राजनीतिक लाभ के लिए दोहरे मानकों में शामिल ना हों।
परेशानियों का किया उल्लेख
गौरतलब है कि भारत और चार अन्य देशों का सुरक्षा परिषद में दो साल का कार्यकाल दिसंबर में समाप्त हो गया है। इन देशों ने अपने कार्यकाल के दौरान कोविड-19 महामारी के चलते लगाए गए प्रतिबंधों के बीच परिषद के काम के संचालन में आने वाली परेशानियों का उल्लेख किया। साथ ही भविष्य में इसी तरह की कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े, इसके लिए संयुक्त राष्ट्र से कामकाज के तरीकों में सुधार करने की सिफारिश भी की है।
UN को लिखा नोट
भारत, आयरलैंड, केन्या, मैक्सिको और नॉर्वे ने 31 दिसंबर को 15 देशों की सुरक्षा परिषद के निर्वाचित सदस्यों के रूप में अपना 2021-2022 का कार्यकाल पूरा किया। कोरोना प्रतिबंधों के चलते यूएन की कार्यशैली पूरी तरह से प्रभावित रही क्योंकि काम को लेकर नियमों में बदलाव किए गए थे, जिससे सदस्य देशों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। अब इन पांच देशों के राजदूतों ने यूएन को नोट लिखकर उनकी कमियों को उजागर किया है और उनमें सुधार की सिफारिश की है।
काम करने के नए तरीकों को खोजने में सक्षम है UN
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज, आयरलैंड के स्थायी प्रतिनिधि फर्गल मिथेन, केन्या के संयुक्त राष्ट्र के दूत मार्टिन किमानी, मेक्सिको के राजदूत जुआन रामोन डे ला फुएंते और नार्वे की दूत मोना जूल ने संयुक्त रूप से ये नोट लिखा है। उन्होंने कहा है कि सुरक्षा परिषद अपने काम करने के नए तरीकों को खोजने और जल्दी से अपनाने में सक्षम है।
वर्चुअल प्रक्रिया साबित हुई कठिन
बता दें कि कोरोना से संबंधित प्रतिबंधों के कारण, परिषद की बैठकें वर्चुअली आयोजित की गईं। काम को जारी रखने के लिए सुरक्षा परिषद को इस तरह की वैकल्पिक प्रक्रिया पर सहमत होना आवश्यक था। दूतों ने इस बात पर जोर डाला कि वर्चुअल मंच पर आयोजित परिषद की चर्चाओं को औपचारिक बैठकें मानने पर कोई सहमति नहीं थी। उन्होंने कहा कि ये प्रक्रिया लगातार प्रेसीडेंसी और सचिवालय दोनों के लिए कठिन साबित हुई।
बहस में हिस्सा नहीं ले सके देश
वर्चुअल मंच पर वीडियो कांफ्रेंसिंग सिस्टम की तकनीकी सीमाओं के कारण बहस में सदस्य देश उस तरह से हिस्सा नहीं ले पाते थे जैसा कि खुले मंच पर लिया जाता है। दूतों ने बताया कि परिषद का नियम 37 संयुक्त राष्ट्र के उन सभी सदस्यों को चर्चा में भाग लेने के लिए आमंत्रित करने की अनुमति देता है, जो सुरक्षा परिषद के सदस्य नहीं है। इस वर्चुअल मीटिंग के चलते वो देश भी बहस में शामिल नहीं हो सके।
महत्वपूर्ण कदम उठाए UN
दूतों ने कहा कि सदस्य के रूप में इस समय के दौरान जो उन्होंने सुरक्षा परिषद में काम करने का अनुभव प्राप्त किया और इन विधियों का प्रत्यक्ष प्रभाव को महसूस किया, उससे वो यही अनुरोध करेंगे कि परिषद की कार्य विधियों पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए। इस तरह की समस्या आगे ना हो, इसके लिए महत्वपूर्ण कदम उठाया जाना चाहिए।